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नज़्म
फ़िक्र-ए-इंसाँ पर तिरी हस्ती से ये रौशन हुआ
है पर-ए-मुर्ग़-ए-तख़य्युल की रसाई ता-कुजा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मुस्कुराते हुए किरदार थे मिर्ज़ा 'ग़ालिब'
मादर-ए-हिन्द के फ़नकार थे मिर्ज़ा 'ग़ालिब'
कैफ़ अहमद सिद्दीकी
नज़्म
राज़दान-ए-ज़िंदगी ऐ तर्जुमान-ए-ज़िंदगी
है तिरा हर लफ़्ज़ ज़िंदा दास्तान-ए-ज़िंदगी
मोहम्मद सादिक़ ज़िया
नज़्म
अँधेरी रात में जब मुस्कुरा उठते हैं सय्यारे
तरन्नुम फूट पड़ता है मिरे साज़-ए-रग-ए-जाँ से
शातिर हकीमी
नज़्म
सब्ज़ा सब्ज़ा सूख रही है फीकी ज़र्द दोपहर
दीवारों को चाट रहा है तन्हाई का ज़हर